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ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौः: ॐ ह्रीं श्रीं क ए ऐ ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं स क ल ह्रीं सौः: ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं
इस सृष्टि का आधारभूत क्या है और किसमें इसका लय होता है? किस उपाय से यह सामान्य मानव इस संसार रूपी सागर में अपनी इच्छाओं को कामनाओं को पूर्ण कर सकता है?
काञ्चीवासमनोरम्यां काञ्चीदामविभूषिताम् ।
दक्षाभिर्वशिनी-मुखाभिरभितो वाग्-देवताभिर्युताम् ।
Her variety is claimed to become essentially the most beautiful in all the 3 worlds, a attractiveness that is not simply Actual physical but in addition embodies the spiritual radiance of supreme consciousness. She is often depicted being a resplendent sixteen-year-aged girl, symbolizing eternal youth and vigor.
The Saptamatrika worship is especially emphasized for anyone trying to get powers of Manage and rule, along with for those aspiring to spiritual liberation.
काञ्चीपुरीश्वरीं वन्दे देवीं त्रिपुरसुन्दरीम् ॥१०॥
वृत्तत्रयं च धरणी सदनत्रयं च श्री चक्रमेत दुदितं पर देवताया: ।।
भगवान् शिव ने कहा — ‘कार्तिकेय। तुमने एक अत्यन्त रहस्य का प्रश्न पूछा है और मैं प्रेम वश तुम्हें यह अवश्य ही बताऊंगा। जो सत् रज एवं तम, भूत-प्रेत, मनुष्य, प्राणी हैं, वे सब इस प्रकृति से उत्पन्न हुए हैं। वही पराशक्ति “महात्रिपुर सुन्दरी” है, वही सारे चराचर संसार को उत्पन्न करती है, पालती है और नाश करती है, वही शक्ति इच्छा ज्ञान, क्रिया शक्ति और ब्रह्मा, विष्णु, शिव रूप वाली है, वही त्रिशक्ति के रूप में सृष्टि, स्थिति और विनाशिनी है, ब्रह्मा रूप में वह इस चराचर जगत की सृष्टि करती है।
Because the camphor is burnt into the fireplace right away, the sins produced by the person grow to be no cost from These. There is not any any therefore have to have check here to uncover an auspicious time to start out the accomplishment. But following intervals are mentioned to be Exclusive for this.
The noose signifies attachment, the goad represents repulsion, the sugarcane bow signifies the thoughts plus the arrows are the five perception objects.
These gatherings are not simply about particular person spirituality but in addition about reinforcing the communal bonds by way of shared encounters.
ब्रह्माण्डादिकटाहान्तं तां वन्दे सिद्धमातृकाम् ॥५॥
॥ अथ त्रिपुरसुन्दर्याद्वादशश्लोकीस्तुतिः ॥